Hey everyone, I hope you're all doing great. Today, I'd like to share a powerful poem about unrequited love.
लगता है जैसेअभी कल की ही बात है ,
जब तुमने मुझसे पहली दफा बात की थी |
मेरे दिल ने तेरी आवाज सुनते रहने की फरियाद की थी |
उन दिनों तेरी बातों को सोचते हुए ,
न जाने मैंने अपनी कितनी सुबहों को रात की थी |
कितने उमंग भरे थे वो दिन
जब था तु साथ मेरे
बढ रहे थे हम उजाले की ओर पीछे छोड़कर अंधेरे
थाम रखा था हमने जिसे कसकर
वो वक्त न जाने कब हाथों से फिसल गया
पता ही न चला |
अब तक ठहरा था जो काफिला हमारी बगिया में
वो कब आगे चल पड़ा
पता ही न चला |
उस दिन जब हमारी आखरी मुलाकात हुई
तब दिल पर एक बोझ सा लिए दौड़ा चला आय था मैं ,
संघ तेरे एक तस्वीर खिचाने को |
तेरे संग बिताए हर लम्हे को
आज भी उस तस्वीर में साफ नजर आता है
कि भले ही मेरा दिल रो रहा था ,
पर मैंने पूरी कोशिश की थी मुस्कुराने को |
दिल में बहुत कुछ था कहने को
पर अफसोस ये लफ्ज़ हमसे दमा कर गए ,
कई सवाल अनकहे रह गए ,
कई जवाब अनसुने रह गए ,
अधूरी रह गई हमारी कहानी ,
जो तुम हमसे अलविदा कह गए |
अगर उस रोज़
लफ्जों ने थोड़ी हिम्मत दिखाई होती ,
दिल में थीं जो पंक्तियाँ
वो तुम्हें सुनाई होती,
तो बदला सा कुछ ये नज़ारा होता,
जिस कदर मेरा दिल है तुम्हारा,
शायद !
उसी तरह तुम्हारा दिल भी हमारा होता ।।
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